नागपुर न्यूज डेस्क: मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने शुक्रवार को नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में जब अपने बचपन और संघर्षों की कहानी सुनाई, तो माहौल भावुक हो गया। नागपुर जिला कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित इस सम्मान समारोह में CJI गवई ने बताया कि वह बचपन में आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता की इच्छा थी कि वह कानून के क्षेत्र में जाएं। अपने पिता के इस अधूरे सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी पसंद छोड़ी और वकालत का रास्ता अपनाया।
गवई ने अपने संयुक्त परिवार की कठिनाइयों को याद करते हुए कहा कि उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के कारण वकील नहीं बन सके और बाद में उन्होंने खुद को डॉ. भीमराव अंबेडकर के कामों को समर्पित कर दिया। घर की सारी जिम्मेदारियां उनकी मां और चाची ने संभालीं। जब वे हाईकोर्ट के जज बनने वाले थे, तो उनके पिता ने उनसे कहा था कि वकील बनकर पैसा तो कमा सकते हो, लेकिन जज बनकर समाज की सेवा करोगे, अंबेडकर जी का रास्ता अपनाओगे।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने गर्व से कहा कि उनके पिता को हमेशा विश्वास था कि उनका बेटा एक दिन भारत का CJI बनेगा, लेकिन अफसोस कि वह यह दिन देख नहीं पाए। 2015 में उनके पिता का निधन हो गया। उन्होंने भावुक होकर कहा, “आज मेरी मां इस क्षण को देख रही हैं, यह मेरे लिए सबसे बड़ी संतुष्टि की बात है।” उनकी बातें सुनकर वहां मौजूद लोग भी भावुक हो गए।
समारोह में माहौल को हल्का करते हुए CJI गवई ने एक पुराना मजेदार किस्सा भी साझा किया। उन्होंने बताया कि एक बार नागपुर कोर्ट में अभिनेत्री हेमा मालिनी के खिलाफ चेक बाउंस का केस आया था। उस समय वह और पूर्व CJI शरद बोबड़े उनकी तरफ से पेश होने वाले थे। गवई ने हंसते हुए कहा, “हेमा मालिनी को देखने के लिए कोर्ट में इतनी भीड़ लग गई थी कि हंगामा मच गया था। हम भी उसे देखकर थोड़ा मजा ले रहे थे।” उन्होंने यह भी बताया कि 2025 में रिटायर होने के बाद वह अपना संस्मरण लिखने की योजना बना रहे हैं।